कुम्भ और तबलीगी जमात के बीच ओछी समानता दिखाने की लिबरलों ने की जी-तोड़ कोशिश, जानें क्यों ‘बकवास’ है ऐसी तुलना
उत्तराखंड के हरिद्वार में 1 अप्रैल से कुंभ मेला चल रहा है। मेले के भव्य दृष्य को देखकर इंटरनेट पर लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं। दुर्भावनापूर्ण इरादे के साथ सोशल मीडिया पर सेक्युलरों ने कुंभ की तुलना निजामुद्दीन मरकज़ के तबलीगी जमात से की है।
जबकि दोनों ही घटनाओं में साफ मूलभूत अंतर है। बावजूद इसके देश के तथाकथित सेक्युलर फैब्रिक को बचाने के नाम पर सोशल मीडिया पर एक हताशा वर्ग इसे तबलीगी जमात से जोड़ने में लगा है। ये लिबरल-वामपंथी और कट्टरपंथियों का समूह गलत सूचनाओं के आधार पर इसे कोरोना नियमों का उल्लंघन साबित करते हुए अपना प्रोपेगेंडा सेट करने में लगा है।
उत्तराखंड सरकार ने कुंभ मेले के आयोजन को सख्त नियमों के पालन के साथ अनुमति दी है। यहाँ नागरिकों की सुरक्षा के लिए कड़े नियम बनाए गए हैं। मेले में आने से पहले लोगों को कोरोना के आरटी पीसीआर टेस्ट की नेगेटिव रिपोर्ट होनी चाहिए, जो कि 72 घंटे से अधिक पुरानी न हो। यही कारण है कि इस वर्ष भीड़ पिछले वर्षों की तुलना में बहुत कम है।
इसके अलावा उत्तराखंड में प्रवेश करने के सभी रास्तों पर सरकार ने कोविड-19 टेस्ट सेंटर बनाए हैं। हरिद्वार रेलवे स्टेशन पर आने वाले यात्री के पास या तो पहले से कोरोना नेगेटिव आरटी पीसीआर रिपोर्ट हो या स्वास्थ्य विभाग द्वारा उसकी जाँच कराई जाएगी। हर की पौड़ी में सैनिटाइजर डिस्पेंसर लगाए गए हैं। इसके अलावा विशेष कोविड -19 आईसोलेशन सेंटर भी बनाए गए हैं।
मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की समयसीमा को भी आगे बढ़ाया जा सकता है। इसीलिए, कोरोना संक्रमण संभावित संक्रमण को रोकने के लिए कड़े नियम लागू किए गए हैं। जबकि पिछले साल मरकज निजामुद्दीन में तब्लीगी जमात वालों ने ऐसी किसी भी सावधानी का पालन नहीं किया था।
वो महामारी का शुरुआती दौर था और उस दौरान कोरोना वायरस का फैलाव उतना नहीं था, जितना अभी है। जमातियों ने कोरोना के नियमों का सही तरीके से पालन नहीं किया था, जिस कारण हजारों लोग संक्रमित मिले थे।
मरकजी जमातियों ने जानबूझकर संक्रमण के हालात को बदतर बनाने के लिए इसे छिपाए रखा। निजामुद्दीन मरकज के लोगों ने कोरोना वायरस को देशभर में फैलाया। अधिकारियों की अपील के बावजूद मरकजी सामने नहीं आए।
लेकिन, जब प्रशासन ने इन जमातियों को ट्रेस कर लिया तो इन्होंने हिंसा की, क्योंकि ये लोग खुद को आईसोलेट नहीं करवाना चाहते थे। यहाँ तक कि जिन लोगों को अस्पतालों और आईसोलेशन सेंटरों पर रखा गया था, वहाँ भी इन शांतिदूतों ने घृणित आचरण का परिचय दिया था। इन्होंने नर्सों का यौन उत्पीड़न करने की कोशिश की और डॉक्टरों पर संक्रमण फैलाने के उद्देश्य से थूका।
तबलीगी जमात की इन्हीं हरकतों की वजह से उनकी छवि पूरी तरह से नकारात्मक हो गई। अगर तबलीगी जमातियों का मामला केवल निजामुद्दीन के मरकज तक ही सीमित होता तो शायद लोगों की संवेदनाएं इनके साथ होतीं। लेकिन, इन्होंने गाजियाबाद के अस्पताल में बहुत ही घटिया हरकत की थी। ये न केवल पूरे अस्पताल में नग्न होकर घूमते थे, बल्कि महिला स्वास्थ्यकर्मियों के साथ छेड़छाड़ की थी। जमातियों ने खुले में शौच किया और पूरे सरकारी तंत्र को चुनौती दे दी थी।
उदाहरण के तौर पर दिल्ली में कई बार जमातियों के स्वास्थ्यकर्मियों पर थूकने की घटनाएं सामने आईं। कानपुर में जमातियों ने अस्पताल के कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार किया। कुछ स्थानों इन्होंने गोमांस तक की माँग की। ये कुछ घटनाएं हैं बाकी इनके कारनामों की फेहरिस्त बड़ी लंबी है।
इसके उलट कुंभ मेले में इस तरह की कोई भी घटना नहीं हुई है। यहाँ भक्त धार्मिक आयोजनों को देखने के लिए आते हैं और धार्मिक ज्ञान का लाभ उठाते हैं। जो लोग कुंभ जैसे पवित्र मेले की तुलना जमातियों से करते हैं उन्हें इनकी हरकतों के बारे में जानना चाहिए।
इसके अलावा इस बात के भी सबूत हैं कि कोरोना वायरस का संक्रमण बंद स्थानों की अपेक्षा खुली जगहों में काफी कम होता है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि कुंभ मेले में भीड़ बाहर खुले आसमान के नीचे है। जबकि, मरकज निजामुद्दीन के मरकजी बिल्डिंग के अंदर थे।
https://hindi.opindia.com/opinion/media-opinion/kumbh-mela-and-tablighi-jamaat-gathering-are-not-the-same-coronavirus-covid-19/
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